'कौशिक' की कलम से


दिल में आए ख्यालों को लफ्जों में पिरोता हूँ ,लिखने के इस सलीके को लोग नाम शायरी का देते हैं ,



बाबा रामदेव – बीती ताहि बिसारी दे आगे की सुधि ले !



स्वामी रामदेव को हस्पताल से छुटी मिलने कि ख़ुशी मेरे साथ-2 उनके सभी समर्थकों को भी होगी ! एक तरह से अच्छा हुआ कि डोक्टर ने उन्हें कुछ दिन योग ना करने और आराम करने की सलाह दी है ! इस बहाने उन्हें भविष्य कि योजना और भूतकाल कि गलतियों पर विचार करने का समय मिल जाएगा ! उन्हें ये समझना होगा कि दो नावों में सवारी करने से किनारा नहीं मिलता !जैसा कि पिछले लेख में मैंने उनकी कुछ गलतियों पर चर्चा कि बात कही थी ! ये मानने में स्वामी जी को भी गुरेज नहीं होना चाहिए कि उनसे या उनके सहयोगियों से कुछ गलतियाँ हुई हैं ! तो आइये हमारी नज़र में उनसे जो गलतियाँ हुई उन पर नज़र डालें !
पहली गलती दो नावों में सवार - स्वामी रामदेव पिछले कुछ वर्षों से खुद ये बात दोहराते रहें हैं कि कांग्रेस भ्रष्टाचार की जननी है और वो इतनी आसानी से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए क्रांति कि जरुरत है ! और इसके लिए उन्होंने राजनितिक पार्टी का गठन करके चुनाव में उतरने का एलान भी कर दिया ! किन्तु अन्ना हजारे कि मिडिया कवरेज और सरकार का रुख देखकर जो असल में एक छलावा था वो इतने प्रभावित हो गए कि उन्होंने गांधीवादी तरीके से अनसन करने का एलान कर दिया !हालाँकि मै मानता हूँ कि इसमें उनके गाँधीवादी सहयोगियों कि राय रही होगी ! मै गाँधी विरोधी नहीं हूँ किन्तु पूर्णता गाँधीवादी भी नहीं हूँ ! आज के दौर में नेताओं के सिने में वो दिल नहीं है जिसमे सवेंदना दया या आत्मबोध हो ! वो भ्रष्टाचार से कमाई गई अपनी काली कमाई को छुपाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं !आज उन्हें उखाड़ने के लिए गाँधी कि नहीं भगत सिंह और सुभाष चंदर बोस सरीखे नेताओं कि जरुरत है !
दूसरी गलती पारदर्शिता का आभाव - आन्दोलन कि रूपरेखा तैयार होने के बाद और मिडिया कि अच्छी कवरेज को देखते हुए स्वामी जी चाहते थे कि ये आन्दोलन हर हाल में हो और दूसरी और सरकार इसे हर हाल में रोकना चाहती थी ! इसके लिए साम दाम दंड भेद जैसी हर तरह कि चाल चली और वो अपनी चाल में सफल भी हो गए ! अगर स्वामी जी ने पारदर्शिता दिखाई होती तो जनता के बीच सरकार का चेहरा सामने आता तब सरकार पर दबाव होता हम पर नहीं !
तीसरी गलती दूर द्रष्टि की कमी- जब ये अंदाज़ा हो गया था कि सरकार आन्दोलन को खदेड़ने के लिए गिरफ्तारी या कोई और फैसला ले सकती है तो हमारे पास कोई योजना नहीं थी ! पहले स्वामी जी ने एलान किया कि मै खुद को गिरफ्तार करवाने के लिए तैयार हूँ और अचानक बचाव कि मुद्रा में आ गए ! जल्दबाजी में वो ये सोचना भी भूल गए कि अगर वो निकल भी जाते तो आम जनता के बीच क्या सन्देश जाएगा !दूसरी और अगर वो अपने आपको अपने समर्थकों के साथ गिरफ्तार करवाते तो अगले दिन देश भर में जेल भरो आन्दोलन चलाया जाता जिसे जनता का भरपूर समर्थन मिलता !
चौथी गलती  आवेश एवंअति बयानबाज़ी – स्वामी जी ने आश्रम पहुँचने के बाद एक दिन में तीन तीन बार प्रेस कांफ्रेंस की जिससे उनके शब्दों का प्रभाव कम होता गया ! जैसा की कहा गया है की एक ही बात को बार बार कहने से समय उसका रस पी लेता है ! इसी कारण उनके बयान न्यूज़ में हेड लाइन नहीं बान पाए ! और आवेश में कई बार ये भूल गए की मिडिया उनके किसी भी बयान का क्या अर्थ निकल सकता है !

स्वामी रामदेव खुद इतने समझदार हैं की उन्हें आइना दिखाने की जरुरत नहीं है किन्तु कई बार ऐसा लगता है की वो खुद से ज्यादा सलाहकारों पर विश्वास करते हैं ! हमें उन पर पूरण विश्वास है और आशा करते हैं की भविष्य में उनके नेत्रत्व में हम अपने अभियान को कामयाब जरुर करेंगे !

इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह ?

ttp://www.chitthajagat.in/?ping=http://kaushikkikalam.blogspot.com/

दो वर्ष पूर्व तक स्वामी रामदेव जी एक योगी थे और अति आदरनीय जीवन व्यतीत कर रहे थे !  आम आदमी से लेकर खास आदमी और नेता से लेकर अभिनेता तक उनके प्रशंशक और अनुयायी थे ! अगर वो चाहते तो इसी तरह जिंदगी गुजार  सकते थे !  जैसा की कुछ अभिनेताओं और नेताओं का कहना है की हर किसी को अपना काम करना चाहिए जो शायद ये भूल गये  हैं कि अगर आज़ादी से पहले हर इन्सान यही सोचता तो आज भी हम गुलामी की जंजीरों में जकड़े होते !  क्योंकि गाँधी जी शायद एक वकील सुबाष चंदर  बोस एक प्रोफसर और चंदेर्शेखर आजाद किसी संस्कृत विधापीठ में पढ़ा रहे होते ! किन्तु देश को प्यार करने वाले खुद से ज्यादा देश की फ़िक्र करतें हैं ! अपनी आन बान और शान देश हित में झोक  कर देते हैं !वही स्वामी जी ने भी किया !
आज की स्थिति भी कुछ कुछ वैसी ही है मुठी भर भ्रष्ट और   गद्दार नेता देश को नोच नोच कर खा रहें हैं  और हर कोई अपना काम कर रहा है ! वो चाहते भी यही हैं की हर कोई अपना काम करें ताकि कोई उनके काम में बाधा ना बने और उनका काम है देश को लूटना !  किन्तु जिसके दिल  में भारत माता विराजमान हो, वो अपनी माँ का इस तरह बलात्कार होते नहीं देख सकता !  इसी वेदना में स्वामी जी ने  देश को वापिस देने की ठानी जो सम्मान उन्हें इस देश से मिला था ! (किन्तु उनसे कुछ गलतियाँ हुई जिनका जिक्र मै अपने अगले ब्लॉग में करूँगा ) !  तब उन्होंने देश को भ्रष्टाचार् के  प्रति जागरूकता अभियान शुरू किया जहाँ उनके साथ लाखों लोग जुड़ते चले गए ! उस वक्त हमारी मिडिया टी.आर पी. और अपने आप को दूसरों से बेहतर बताने की होड़ में लगी थी ! इसीलिए किसी भी नेशनल चैनल पर उन्हें नहीं दिखया गया ! उसके बाद स्वामी जी ने २७ फ़रवरी को विशाल  रैली की  जिसमें बड़े बड़े विचारकों ने अपनी राय रखी पर मिडिया के लिए ये सब कोई न्यूज़ नहीं थी !
अब में आपको आज़ादी से पहले के दौर में लेकर जाता हूँ तब कोई इलेक्ट्रोनिक्स मिडिया नहीं था ! भारत में आज़ादी के लिए बिगुल बज चूका था ! महात्मा  गाँधी से लेकर सुबाष चंदर बोस और चंदर शेखर  आजाद से लेकर भगत सिंह तक हर कोई अंग्रेजो के खिलाफ खड़ा था ! और भारत के आखरी आदमी तक उनकी चर्चा थी ! उन सभी के लाखों समर्थक थे तो विरोधी भी थे ! जिसका कद  जितना  बड़ा था उतने ही ज्यादा उनके विरोधी भी थे ! आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला भी चला !  किन्तु सबका ध्येय एक था ! आज़ादी  और हर आम इन्सान यही चाहता था फिर वो चाहे गाँधी के रास्ते से मिले या भगत सिंह के रास्ते चलकर मिले ! आज इतिहास में उनका नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है और वो लाखों लोगों के हीरो हैं वही दूसरी और आरोप लगाने वालों को कोई नहीं जानता !
अब आज के दौर की बात करते हैं ध्येय सबका एक ही है , रास्ता बेशक अलग हो  चाहे वो अन्ना हजारे हो यां स्वामी रामदेव जी !किन्तु आज इलेक्ट्रोनिक्स मिडिया ने जो भूमिका निभाई है वो शक के घेरे में है की वो इस अभियान को सफल बनाना चाहते हैं या रोकना चाहते हैं ! क्या ये उनकी मजबूरी है की उन्हें  २४ घंटे न्यूज़ दिखाने के  लिए कुछ गैर जिम्मेदार  नेताओ से उनकी राय पूछनी पड़ती है जो बेतुके आरोपों कि जड़ी लगा देता है ! जिसका कोई आधार नहीं होता और उसे ब्रकिंग न्यूज़ बनाकर बार बार दिखाया  जाता है !ताकि आम लोग जो स्वामी जी बारे में कुछ नहीं जानते वो आरोपों के आधार पर अपनी राय कायम कर सकें !
 कुछ वरिष्ट पत्रकारों से बातचीत करने पर उन्होंने भी माना की कुछ चैनेल अपनी नैतिकता और फ़र्ज़ को भूलकर मुद्दे से आम इन्सान को हटाना चाहते हैं !क्या ये माना जाए की उन्हें चैनेल के मालिकों की तरफ से कोई दिशा  निर्देश था या  सरकारी दबाव में ऐसा कर रहे थे !कुछ चैनेल तो स्वामी रामदेव को सिर्फ रामदेव से संबोदित कर रहे थे ! हमारे भारत वर्ष की भाषा और  संस्कर्ती ने हमें सैकंडो सम्मानजनक शब्द दिए हैं !हमरे यहाँ  किसी आम साधू को भी इस प्रकार संबोदित नहीं किया जाता !!मेरा मानना है की आज अगर इलेक्ट्रोनिक्स मिडिया ना होता तो ये आन्दोलन ज्यादा सफल होता !क्योंकि प्रिंटिंग मिडिया के जरिये हर भारतीय को स्वामी जी के ध्येय का पता चलता और आम जन उनसे जुड़ता चला जाता !जहाँ आम जन में यही चर्चा होती कि भारत का कला धन विदेशों में कितना है और सरकार को उसे वापिस लेन में क्या परेशानी है !
एक तरफ जहाँ स्वामी जी हस्पताल में मौत से जूझ रहे थे वही दूसरी और एक चैनेल कुछ पाखंडी साधुओं के साथ (जो नाम के लिए कीसी भी हद तक गिर जाते हैं) स्वामी जी के योगी होने पर ही सवाल खड़े कर रहे थे !जिन्होंने योग का  डंका भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में बजाया  है !आज अगर किसी इन्सान से पूछा जाए कि क्या वो योग के बारे में कैसे जानता है तो उसका जवाब स्वामी रामदेव होगा ! वो उस व्यक्ति पर दोष लगा कर खुद को ही छोटा दिखा रहे थे  ! क्या चाँद की तरफ मुह करके थूकने से चाँद मैला हो जाएगा ?ये सवाल मै उस डोंगी सी पूछता हूँ जिसे ये भी नहीं पता  कि स्वामी जी हँसते कैसे हैं !उनकी दिनचर्या क्या है !जिसे ये भी नहीं पता की स्वामी जी ने वर्षों से अन्न को त्याग रखा है फिर भी उन्होंने १५ से २० बार प्रेस कांफ्रेंस कि और हर बेतुके सवाल का जवाब देने कि कोशिश क़ी !इसी प्रकार किसी ना किसी चैनल पर कोई ना कोई नेता आरोप लगा रहा था ! और पत्रकार अपने नैतिक मूल्यों क़ी दुहाई दे रहा था !
सवाल ये उठता  है की अगर वो निष्पक्ष राय देना ही चाहते हैं तो बहस के लिए दोनों पक्षों को क्यों नही बुलाते !जिससे आम जानता को भी सोचने का मौका मिले ! एक व्यक्ति आरोप लगता है की स्वामी जी के पास करोड़ों की सम्पति है तो उससे ये प्रश्न पूछने वाला कोई नहीं होता की क्या करोड़ों रुपये की आयुर्वेदिक दवाओं का उत्पादन स्वामी जी कमरे में बैठकर करें !और ये सम्पति स्वामी जी की नहीं बल्कि एक ट्रस्ट की है जो कई तरह से सेवाएँ दे रही है !वो इसका उपयोग अपने परिवार के लिए नहीं करते !और अगर ये गलत तरीके से कमाई गई होती तो रात को सोते हुए लोगों पर लाठियां बरसाने वाली सरकार उन्हें यहाँ तक पहुचने देती ! सच तो ये है की वो अपनी सभी जाँच एजेंसियों से उनकी जाँच करवा चुकी है किन्तु उन्हें मुह की खानी पड़ी !
तब कुछ नेता लोकतंत्र कि दुहाई देने लगे जिन्हें  लोकतंत्र कि परिभाषा तक नहीं मालूम और मिडिया के जरिये लोगों को बरगलाने कि कोशिश करते दिखे! उनका कहना था कि हम जानता के चुने हुए नेता हैं ! क्या इसका मतलब ये हुआ कि जनता ने उन्हें लूटने का अधिकार दे दिया !कई  वरिष्ट नेताओं  का कहना तो यहाँ तक था कि स्वामी जी को कोई हक़ नहीं कि वो काले धन को लाने कि मांग करें क्योंकि वो खुद जनता के चुने हुए सांसद है तो उन्हें ही उस पर  फैसला करने का हक है ! मै उस नेता को चैलेंज करता हूँ कि वो बिना किसी पर्लोभन के एक लाख तो दूर दस हज़ार व्यक्ति इकठे करके दिखा दे !जिस लोकतंत्र कि वो दुहाई देते हैं अब जरा उसे समझ लो !
पिछले लोकसभा चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत रहा @ ५८ % ,
कांग्रेस का वोटिंग % रहा...  २८.५% ,
हमारे देश कि कुल आबादी.....१२० करोड़ ,
कुल मत दान हुआ ....३८७४५३२२३
कांग्रेस को मिले ......११०४२४१६८
अगर इसी का नाम लोकतंत्र है तो हमारे लिए इससे बड़ी विडम्बना और कोई नहीं क़ी १२० करोड़ लोगों पर राज करने वाली सरकार को सिर्फ ११ करोर लोगों ने चुना है !जिसकी दुहाई ये नेता देते हैं क्या  इसी का नाम लोकतंत्र है !

आप सभी को मेरे विचार कैसे लगे मुझे जरूर बताएं !
आर.ऍम.शर्मा "कौशिक"
ईमेल ..rmsharma.sharma@gmail.com

मेरा पहला प्यार

वो वक्त ही कुछ अजीब था ,
या तो मै मासूम था ,
या फिर बदनसीब था ...
उसकी एक नज़र से ,
ऐसा वार हो गया ...
लाख संभाला खुद  को मैंने ,
पर प्यार हो गया ...


उसने की थी दिल्लगी ,
और मै प्यार समझ बैठा...
उसे आदत थी मुस्कुराने की ,
और मै इकरार समझ बैठा ...
वो दोस्त समझती रही मुझको ,
अपनों से भी प्यारा ..
मै हाल ए दिल कह ना पाया ,
कर ना पाया कोई इशारा ...


 एक दोस्त ने ऐसा खेल खेला ,
बन के रह गया मै खिलौना ...
इश्क की राह में जीत तुझे दिलाऊंगा,
फ़िक्र ना कर तेरे प्यार से तुझे मिलवाऊंगा ...
जाने कैसे उसकी बातों में मै आ गया ,
और दोस्त बने दुश्मन से दोखा खा गया ...


उसकी नज़र थी उस पर,
खुद से भी ज्यादा यकीं करती थी जो मुझ पर ...
मेरा सहारा लेकर ,
वो उसके करीब आ गया ....
मुझे मिला देव स्वरूप उसके दिल में ,
और वो प्यार उसका पा गया ...


आँखे खुली तो  देर हो चुकी थी भारी,
फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी...
आखरी कोशिश करने की मन में ठान ली ,
और सब कुछ  कहने के लिए उसकी बांह थाम ली ...
दिल में थी जो आग वो आंसुओं में बह गई ,
वो भी रोते रोते बस इतना ही कह गई ...
दुनिया के रिश्तों से बंधे हैं हम,
 मिलना अपना मुमकिन नहीं...
तू फ़रिश्ता है कोई इन्सान नहीं 
तेरे प्यार के काबिल मै नहीं ...
कुछ सवालों का जवाब,
मै आज भी अतीत के पन्नो  में खोजता हूँ ...
वो वफ़ा थी या बेवफा थी ,
अक्सर अकेले में सोचता हूँ ....

तब याद तेरी आने पर......

अब इस दर्द में वो अहसास कहाँ ,
 जो पहले होता था ,
तब याद तेरी आने पर आँखें ही नहीं,
 दिल भी रोता था ...
ख्याल तेरा आने पर खो जाता हूँ तुझ में,
पर पहले पूरी रात ना सोता था ...
अब इस दर्द में वो अहसास कहाँ ,
जो पहले होता था ..
.
अब ना आँखे रोती है,
और ना जिश्म तड़पता है ... 
तब मिलने कि ख़ुशी में,
पागल सा हो जाता था ..
अब तो दिल भी थोडा सा धड़कता है ...
गम को अक्सर छुपा लेता था दिल में ,
पर छुप छुप के बहुत रोता था ...
अब इस दर्द में वो अहसास कहाँ ,
जो पहले होता था ...


हर पल बातों में तेरा जिक्र,
ख्वाबों में तेरा असर ..
कभी  वफ़ा पर तो कभी तेरी बेवफाई पर,
अक्सर कुछ ना कुछ लिखता था ...
तब हर चेहरे में मुझको,
तेरा ही अक्स दीखता था ...
अब इस दर्द में वो अहसास कहाँ ,
जो पहले होता था ...
तब याद तेरी आने पर आँखें ही नहीं,
दिल भी रोता था .....2222222

एक मुदत के बाद मुझे उसका ख्वाब आया,

एक मुदत के बाद मुझे उसका ख्वाब आया,


ख्वाब में उसे अपने साथ सफ़र करते पाया॥


वो मेरे सामने बैठी थी, पर पर्दा नशीं थी ,


नज़र ठहर गई चेहरे पर,जब उसने पर्दा उठाया॥


शायद पहचान ना पाई मुझको,इसीलिए पूछ बैठा ,


पूछा जो नाम ,तो पल भर के लिए चेहरा उतर आया!


सोच रहा था कैसे शुरू करूँ ,क्या उससे मै कहूँ ,


शुक्र है बताने पर ही सही ,उसे कुछ याद तो आया..


उसका चेहरा आज भी मेरी कल्पना जैसा था,


अक्सर रातों को आए किसी सपने जैसा था !


जैसी उम्मीद थी उसे कुछ वैसा ही पाया,


जब साथ बैठे लोगों से मेरा परिचय करवाया ....


गिर ना पड़ें कहीं मेरी आँखों से आंसू ,


मै जल्दी का बहाना करके घर चला आया ....

मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ





मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ ,
मरुस्थल  में पड़ा एक छोटा सा कण हूँ !
लफ्जों का फेर भला  मै क्या जानू
दिल मे आए ख्यालों को  लफ्जों  में पिरोता हूँ!
 सीधा हूँ और सीधी बात करता  हूँ !!


सपनो की  दुनिया से बाहर  निकलकर ,
यथार्त के धरातल पर ,
मन कि आँखों से, जब खुद को देखता हूँ !
मजबुरिओं कि चादर में लिपटा सा,
किसी अनजाने डर से सिमटा सा,
असहाय और बेबस सा नज़र आता हूँ !
सीधा हूँ और सीधी बात करता  हूँ !


कभी समाज के ठेकेदारों से ,
कभी कानून के पहरेदारों से ,
अपने हक के लिए लड़ता हूँ ..
 जानता हूँ कोई नहीं सुनने वाला ,
आदतन फिर भी शोर करता हूँ ...
सीधा हूँ और सीधी बात करता हूँ ...


कभी महंगाई की मार से ,
झूठे अश्वासन देती सरकार से .
 रोज़ सरकारी दफ्तरों की कतार में,
कभी बिजली ,पानी के इंतजार में ...
आए दिन मरता हूँ ...
सीधा हूँ और सीधी बात करता हूँ ...


अनजाने  पथ का अन जाना राही हूँ ,
 मेरी कोई पहचान नहीं  ...
मज़बूरी मेरी ख़ामोशी है ,
वरना मै बेजुबान नहीं ...
दुनिया के बाज़ार में कीमत नहीं जिसकी,
मै तो ऐसा धन हूँ ....
मरुस्थल में पड़ा एक छोटा सा कण हूँ ....
मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ .....

वो मिली ख्वाब में ..



एक मुदत के बाद मुझे उसका ख्वाब आया,
ख्वाब में उसे अपने साथ सफ़र करते पाया


वो मेरे सामने बैठी थी, पर पर्दा नशीं थी ,
नज़र ठहर गई चेहरे पर,जब उसने पर्दा उठाया

शायद पहचान ना पाई मुझको,इसीलिए पूछ बैठा ,
पूछा जो नाम ,तो पल भर के लिए चेहरा उतर आया!!


सोच रहा  था  कैसे शुरू करूँ ,क्या उससे मै कहूँ ,
शुक्र है बताने पर ही सही ,उसे कुछ याद तो आया..

उसका चेहरा आज भी मेरी कल्पना जैसा था,
अक्सर रातों को आए किसी सपने जैसा था !


जैसी उम्मीद थी उसे कुछ वैसा ही पाया,
जब साथ बैठे लोगों से मेरा परिचय करवाया ....

गिर ना पड़ें कहीं  मेरी आँखों से आंसू ,
मै जल्दी का बहाना करके घर चला आया ....








हुस्न कि तारीफ

आपके हुस्न कि तारीफ में सोचता हूँ कुछ अल्फाज लिखूं ,
लिखा ना हो जो अब तक किसी ने ऐसा कुछ आज लिखूं ....

गीत लिखूं या गजल लिखूं ,शायरी लिखूं या कलाम लिखूं ,
लिखने को बेचैन हूँ ,पर समझ ना आए क्या लिखूं ....

चेहरे को क्या लिखूं ,चाँद लिखूं या गुलाब लिखूं ,
आँखों को क्या लिखूं ,मधुशाला लिखूं या शराब लिखूं ....

जुल्फों को क्या लिखूं ,घटा लिखूं या शाम लिखूं ,
दिल करता है हर नगमा बस आपके नाम लिखूं ...

हर लफ्ज एक गीत बने ,ऐसा कोई साज़ लिखूं ,
कौशिक कि कलम से एक नया अंदाज़ लिखूं ....

आपके हुस्न कि तारीफ में सोचता हूँ कुछ अल्फाज लिखूं ,
लिखा ना हो जो अब तक किसी ने ऐसा कुछ आज लिखूं ....

प्रांतवाद का ज़हर


आंतकवादी और देश द्रोही हैं,
ये राज नेताओं के भेष में,

प्रान्त वाद का नया ज़हर,
ये फैला रहे हैं देश में !

आम आदमी कि फ़िक्र नहीं ,
ये मुद्दा नया उठाते हैं,

देश प्रेम को ढाल बनाकर,
नित सड़कों पर उतर आते हैं !

ऐसा क्या कह दिया "खान" ने,
ये पीछे पड़ गए जी जान से,

राजनिति के सांप ने देखो,
कैसा अपना रंग दिखाया,

खेल ,कला  को भी  बख्शा नहीं,
उसके बयान को हथियार बनाया !

लोकतंत्र का निकला दिवाला,
भक्षक बन गया खुद रखवाला,

कानून कोई नया बनाओ,
सस्ती राजनिति पर रोक लगाओ,

'कौशिक,कि बात मानो तो ,
दे दो इनको देश निकाला,

आम आदमी झुलस रहा है,
इनके आपस के द्वेष में,

प्रान्त वाद का नया जहर,
ये फैला रहे हैं देश में....

आतंकवादी और देशद्रोही हैं ,
ये राजनेताओं के भेष में .....

इश्क से इंतजार तक

तुम आओगी मिलने एक दिन ,

इस उम्मीद में जिए जा रहा हूँ ...

कौन कमबख्त कहता है मै शराबी हूँ ,


वो तो तेरे इंतजार में पिए जा रहा हूँ ...


चाय कि चुस्कियों में अब स्वाद नहीं आता ,


कुछ भी कहो अब पिए बिना रहा नहीं जाता !


तेरे इंतजार कि घडी इतनी लम्बी हो गई ,


दर्द तन्हाई का अब सहा नहीं जाता ...


कब बीत गई रात कुछ पता ना चला ...


चार जाम पिने तक पुरे होश में था ,


बोतल कब ख़तम हुई कुछ पता ना चला ...


अब तो हर रोज़ का ये काम हो गया,


देख तेरे इश्क में क्या अंजाम हो गया ...


अच्छा होता अगर आने का वादा ना करती,


एक शरीफ इन्सान शहर भर में बदनाम हो गया ...


आज ठुकराया भी तो इस मुकाम पर तुने ,


जब सर पर क़र्ज़ बेशुमार हो गया ...


पहले पीता था तेरे इंतजार में ,


अब दर्द में पिए जा रहा हूँ ,

उठाया था जो बैंक से कर्जा ,


उसे किश्तों में दिए जा रहा हूँ ...

दिल कि आवाज़

मै अक्सर अकेले में,
पूछता हूँ अपने दिल से ,
ऐ दिल बता तू क्या चाहता है !

सुनकर मुस्कुराता है दिल,
और कहता है मुझसे ,
आज पूछते हो तुम,
जब दफ़न हो गई हर ख्वाइश ,
तेरी जरुरत के आगे ,
दब गई मेरी आवाज़ ,
तेरी फितरत के आगे !

आज पूछते हो तुम ,
जब मजबूरियां बन गई कमजोरियां ,
तुम करते रहे समझोते हालात से ,
और बढती गई दूरियां !
जब बदल दिए रास्ते,
रुकावटों के डर से ...
सोचो क्या सोच के निकले थे घर से !

आज पूछते हो तुम ,
जब भुला चुके खुद को ही ,
आगे बढ़ने कि होड़ में ...
और पिछड़ गए हर दौड़ में ....

काश उस दिन सुनी होती मेरी आवाज़ ,
जब उठाया था पहला कदम ,
तब मै बताता क्या है तेरी मंजिल ,
और क्या है तेरा रास्ता !