'कौशिक' की कलम से


दिल में आए ख्यालों को लफ्जों में पिरोता हूँ ,लिखने के इस सलीके को लोग नाम शायरी का देते हैं ,



मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ





मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ ,
मरुस्थल  में पड़ा एक छोटा सा कण हूँ !
लफ्जों का फेर भला  मै क्या जानू
दिल मे आए ख्यालों को  लफ्जों  में पिरोता हूँ!
 सीधा हूँ और सीधी बात करता  हूँ !!


सपनो की  दुनिया से बाहर  निकलकर ,
यथार्त के धरातल पर ,
मन कि आँखों से, जब खुद को देखता हूँ !
मजबुरिओं कि चादर में लिपटा सा,
किसी अनजाने डर से सिमटा सा,
असहाय और बेबस सा नज़र आता हूँ !
सीधा हूँ और सीधी बात करता  हूँ !


कभी समाज के ठेकेदारों से ,
कभी कानून के पहरेदारों से ,
अपने हक के लिए लड़ता हूँ ..
 जानता हूँ कोई नहीं सुनने वाला ,
आदतन फिर भी शोर करता हूँ ...
सीधा हूँ और सीधी बात करता हूँ ...


कभी महंगाई की मार से ,
झूठे अश्वासन देती सरकार से .
 रोज़ सरकारी दफ्तरों की कतार में,
कभी बिजली ,पानी के इंतजार में ...
आए दिन मरता हूँ ...
सीधा हूँ और सीधी बात करता हूँ ...


अनजाने  पथ का अन जाना राही हूँ ,
 मेरी कोई पहचान नहीं  ...
मज़बूरी मेरी ख़ामोशी है ,
वरना मै बेजुबान नहीं ...
दुनिया के बाज़ार में कीमत नहीं जिसकी,
मै तो ऐसा धन हूँ ....
मरुस्थल में पड़ा एक छोटा सा कण हूँ ....
मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ .....

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

"अनजाने पथ का अन जाना राही हूँ ,
मेरी कोई पहचान नहीं...
मज़बूरी मेरी ख़ामोशी है,
वरना मै बेजुबान नहीं...
दुनिया के बाज़ार में कीमत नहीं जिसकी,
मै तो ऐसा धन हूँ....
मरुस्थल में पड़ा एक छोटा सा कण हूँ....
मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ....."
लाजवाब रचना के माध्यम से सीधी और सच्ची बात - हार्दिक बधाई.