'कौशिक' की कलम से


दिल में आए ख्यालों को लफ्जों में पिरोता हूँ ,लिखने के इस सलीके को लोग नाम शायरी का देते हैं ,



हुस्न कि तारीफ

आपके हुस्न कि तारीफ में सोचता हूँ कुछ अल्फाज लिखूं ,
लिखा ना हो जो अब तक किसी ने ऐसा कुछ आज लिखूं ....

गीत लिखूं या गजल लिखूं ,शायरी लिखूं या कलाम लिखूं ,
लिखने को बेचैन हूँ ,पर समझ ना आए क्या लिखूं ....

चेहरे को क्या लिखूं ,चाँद लिखूं या गुलाब लिखूं ,
आँखों को क्या लिखूं ,मधुशाला लिखूं या शराब लिखूं ....

जुल्फों को क्या लिखूं ,घटा लिखूं या शाम लिखूं ,
दिल करता है हर नगमा बस आपके नाम लिखूं ...

हर लफ्ज एक गीत बने ,ऐसा कोई साज़ लिखूं ,
कौशिक कि कलम से एक नया अंदाज़ लिखूं ....

आपके हुस्न कि तारीफ में सोचता हूँ कुछ अल्फाज लिखूं ,
लिखा ना हो जो अब तक किसी ने ऐसा कुछ आज लिखूं ....

प्रांतवाद का ज़हर


आंतकवादी और देश द्रोही हैं,
ये राज नेताओं के भेष में,

प्रान्त वाद का नया ज़हर,
ये फैला रहे हैं देश में !

आम आदमी कि फ़िक्र नहीं ,
ये मुद्दा नया उठाते हैं,

देश प्रेम को ढाल बनाकर,
नित सड़कों पर उतर आते हैं !

ऐसा क्या कह दिया "खान" ने,
ये पीछे पड़ गए जी जान से,

राजनिति के सांप ने देखो,
कैसा अपना रंग दिखाया,

खेल ,कला  को भी  बख्शा नहीं,
उसके बयान को हथियार बनाया !

लोकतंत्र का निकला दिवाला,
भक्षक बन गया खुद रखवाला,

कानून कोई नया बनाओ,
सस्ती राजनिति पर रोक लगाओ,

'कौशिक,कि बात मानो तो ,
दे दो इनको देश निकाला,

आम आदमी झुलस रहा है,
इनके आपस के द्वेष में,

प्रान्त वाद का नया जहर,
ये फैला रहे हैं देश में....

आतंकवादी और देशद्रोही हैं ,
ये राजनेताओं के भेष में .....

इश्क से इंतजार तक

तुम आओगी मिलने एक दिन ,

इस उम्मीद में जिए जा रहा हूँ ...

कौन कमबख्त कहता है मै शराबी हूँ ,


वो तो तेरे इंतजार में पिए जा रहा हूँ ...


चाय कि चुस्कियों में अब स्वाद नहीं आता ,


कुछ भी कहो अब पिए बिना रहा नहीं जाता !


तेरे इंतजार कि घडी इतनी लम्बी हो गई ,


दर्द तन्हाई का अब सहा नहीं जाता ...


कब बीत गई रात कुछ पता ना चला ...


चार जाम पिने तक पुरे होश में था ,


बोतल कब ख़तम हुई कुछ पता ना चला ...


अब तो हर रोज़ का ये काम हो गया,


देख तेरे इश्क में क्या अंजाम हो गया ...


अच्छा होता अगर आने का वादा ना करती,


एक शरीफ इन्सान शहर भर में बदनाम हो गया ...


आज ठुकराया भी तो इस मुकाम पर तुने ,


जब सर पर क़र्ज़ बेशुमार हो गया ...


पहले पीता था तेरे इंतजार में ,


अब दर्द में पिए जा रहा हूँ ,

उठाया था जो बैंक से कर्जा ,


उसे किश्तों में दिए जा रहा हूँ ...