'कौशिक' की कलम से


दिल में आए ख्यालों को लफ्जों में पिरोता हूँ ,लिखने के इस सलीके को लोग नाम शायरी का देते हैं ,




तीन लफ्जों में कर दूँ बयाँ ,

प्यार इतना भी नहीं असाँ ...

ये तो एक एहसास है ,

जो सबसे जुदा ,सबसे खास है ,

ये ऐसा सागर है ,

जिसकी गहराई बे हिसाब है ...

प्यार पाना है अगर ,

तो इसके काबिल बनो ,

कभी दरिया ,कभी कश्ती ,

कभी भंवर तो कभी शाहिल बनो ...

कभी ये समर्पण है ,कभी ये फ़र्ज़ है ,

कभी आस्था है ,तो कभी क़र्ज़ है ...

ये इश्क का मजहब है ,

आशिकों का खुदा है ...

कोई नहीं इसके जैसा ,

ये सबसे जुदा है ...

ये शायर कि शायरी में ,

कवि कि कविता में ...

यही है बाईबल और कुरान में ,

यही है गुरुग्रंथ और गीता में ....

माना ये पूरी ज़िन्दगी नहीं ,

पर ज़िन्दगी का बड़ा हिस्सा है ,

जो कभी खतम ना हो ,

ऐसा एक किस्सा है ...

कुछ लफ्जों में कर दूँ बयाँ ,

प्यार इतना भी नहीं आसान ...

अँधेरे की आदत इस कदर पड़ गई 'कौशिक' कि अब चांदनी से भी डर लगता है ,
एक चिराग ने ही घर जलाया है मेरा कि अब हर रोशनी से डर लगता है !
ख्वाबों में देखूं तो बड़ी हसीं लगती है जिंदगी ......
खुली आँखों से बड़ी बेजान सी लगती है ज़िन्दगी ...

महफ़िल में जाऊँ तो रंगीन लगती है ये जिंदगी ....
तन्हाई में सोचूं तो गुमनाम है ये जिंदगी .....

खुशिओं के साए में बड़ी छोटी लगती है जिंदगी .....
गम की परछाई में बहुत लम्बी लगती है जिंदगी ....

यूं तो दोस्तों के बिना भी जीते हैं जिंदगी,
पर "कौशिक "यही है जीना तो क्या है जिंदगी...

ख्वाब देखें हैं जब से उनके ,

दीवाना हो गया मै उनका ...

निगाहें ढूंढ़ रही है उनको ,

नाम तक मालूम नहीं जिनका ...

उमर बीत गई उन्हें समझाते समझाते ,पर वो अब तक नहीं समझे ,

बाद मरने के अगर समझे 'कौशिक ',तो फिर क्या समझे ......

माफ़ी मांगने कि ताक़त मुझ में नहीं ......




मै कोरा हूँ शायद ,


और वो है मुझसे भी नादाँ ...


कभी वो मुझसे परेशां ,


कभी मै उससे परेशां ...


उसका अंदाज़े बयां ही कुछ ऐसा है ,


कि चोट दिल पे लगती है ...


मै अपना हक समझता हूँ उसपर ,


वो ये क्यों नहीं समझती है ...


मै अक्सर कठोर हो जाता हूँ ,


नहीं मानूंगा इस बार,


सोच के रूठ जाता हूँ ...


पर उसकी मानाने कि जिद से ,


मै हर बार टूट जाता हूँ ...


फिर क्यों रूठी है वो मुझसे ,


मुझे आजमाने के लिए ,


उसे मालूम है इतना ,


मै नहीं आऊंगा मनाने के लिए ...


दुरी सहने कि ताक़त है मुझमे ,

पर झुकने कि आदत मुझमे नहीं ...


माफ़ करने कि ताकत है मुझमे ,


पर माफ़ी मांगने कि ताकत मुझमे नहीं ...

आओ एक दूजे को जान ले ...

बिन देखे क्या कहे ,
बिन जाने क्या लिखे ...
कुछ तुम कहो ,
कुछ हम कहे ,
आओ एक दूजे को जान ले ...
जिन्दगी की इस दोड़ में ,
आगे बढने की होड़ में ,
कुछ अपने पीछे छुट गए,
कुछ रिश्ते भी टूट गए ...
मिलना अपना मुमकिन नहीं,
फिर भी अगर मिल जाए कहीं ...
शब्दों की बिना पर,
एक दूजे को पहचान ले ....
कुछ तुम कहो,
कुछ हम कहे,
आओ एक दूजे को जान ले ......

नादाँ थे हम समझे नहीं .....

ये सोचकर अपना दर्द ,
हम उस बेदर्द को सूनाते रहे ...
जीत लूँगा एक दिन उनका दिल ,
हम पथरों से सर टकराते रहे ,
लोग हमे समझाते रहे ॥
नादाँ थे हम समझे नहीं ,
हर कदम पे ठोकर खाते रहे ...
थक गए हैं अब तो चलते चलते,
टूट चुके हैं सब सहते सहते ...
जिस पे भी किया भरोसा ,
उसी से धोखा खाते रहे ,
नादाँ थे हम समझे नहीं,
हर कदम पे ठोकर खाते रहे...
खुद को हमने बदलकर देखा ,
ज़माने के साथ थोडा चलकर देखा,
मुश्किल था यूँ खुद को बदलना ,
आसान नहीं था ज़माने संग चलना,
फिर भी दिल को समझाते रहे ,
नादाँ थे हम समझे नहीं ,
हर कदम पे ठोकर खाते रहे....
हम रह गए पीछे,
जमाना निकल गया आगे
हमने गैरों से मुहँ मोड लिया ,
सब कुछ अपनों पे छोड़ दिया
वो कैसे अपने थे
जो गैरों की तरह हमे खाते रहे ..
।नादाँ थे हम समझे नहीं ,
हर कदम पे ठोकर खाते रहे ....
हमे आज भी है इतना यकीं ,
खुदा की रहमत होगी कभी न कभी ..
।हम सच्चे हैं अगर तो जीत होगी ,
किसी को हमसे भी सच्ची प्रीत होगी ...
कोई हमारा भी सहारा बनेगा ,
हमें भी एक दिन किनारा मिलेगा ॥
पा लेगा मंजिल उस दिन ,कौशिक "
खुदा का जब सहारा होगा ....,


तुम दूर क्या गए इतने दिन

तुम दूर क्या गए इतने दिन ,
क्या कहूँ कैसे कहूँ,
कैसे कटते थे दिन तेरे बिन ,

सूना -सूना लगता है जैसे ,
आसमां तारों के बिन ,
रात अँधेरी हो जैसे ,
चंदा के बिन ,
क्या कहूँ कैसे कहूँ ,
कैसे कटते थे दिन तेरे बिन ,


जैसे प्यासी हो धरती ,
पानी के बिन ,
कैसे बरसेंगे मेघा ,
सावन के बिन ,
क्या कहूँ ........

जैसे कठिन हो रास्ता ,
जाना हो दूर ,
कैसे कटे वो सफ़र साथी बिन ,
क्या कहूँ ,कैसे ......

जैसे मुरझाए हो फूल ,
सुखा हो उपवन ,
कैसे खिले वो ,
बहारो के बिन ,
क्या कहूँ कैसे कहूँ ,
कैसे कटते थे दिन तेरे बिन

तुम दूर क्या गए इतने दिन ,
क्या कहूँ कैसे कहूँ,
कैसे कटते थे दिन तेरे बिन ,

सूना -सूना लगता है जैसे ,
आसमां तारों के बिन ,
रात अँधेरी हो जैसे ,
चंदा के बिन ,
क्या कहूँ कैसे कहूँ ,
कैसे कटते थे दिन तेरे बिन...


जैसे पयासी हो धरती ,
पानी के बिन ,
कैसे बरसेंगे मेघा ,
सावन के बिन ,
क्या कहूँ ........

जैसे कठिन हो रास्ता ,
जाना हो दूर ,
कैसे कटे वो सफ़र साथी बिन ,
क्या कहूँ ,कैसे ......

जैसे मुरझाए हो फूल ,
सुखा हो उपवन ,
कैसे खिले वो ,
बहारो के बिन ,
क्या कहूँ कैसे कहूँ ,
कैसे कटते थे दिन तेरे बिन...
' अधुरा गीत '
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क्या गाऊं बता मै तेरे लिए ,
एक सपना है तू मेरे लिए ....
सागर से गहरी आँखें है तेरी ,
झुक गई जो नजरें मिलते ही मेरी ....
एक पल तो लगा हकीकत है कोई ,
आसमान से अप्सरा शायद उतरी है कोई ...

क्या गाऊं ......

जुल्फें काली घटा सी घनेरी ,
गालों को चूमती लट ये तेरी ...
गोरा मुखड़ा चाँद का टुकड़ा ,
हटती नहीं जिससे नज़र ये मेरी ...
ये गीत बनाऊं मै तेरे लिए ,
एक सपना है तू मेरे लिए ....