'कौशिक' की कलम से


दिल में आए ख्यालों को लफ्जों में पिरोता हूँ ,लिखने के इस सलीके को लोग नाम शायरी का देते हैं ,



एक मुदत के बाद मुझे उसका ख्वाब आया,

एक मुदत के बाद मुझे उसका ख्वाब आया,


ख्वाब में उसे अपने साथ सफ़र करते पाया॥


वो मेरे सामने बैठी थी, पर पर्दा नशीं थी ,


नज़र ठहर गई चेहरे पर,जब उसने पर्दा उठाया॥


शायद पहचान ना पाई मुझको,इसीलिए पूछ बैठा ,


पूछा जो नाम ,तो पल भर के लिए चेहरा उतर आया!


सोच रहा था कैसे शुरू करूँ ,क्या उससे मै कहूँ ,


शुक्र है बताने पर ही सही ,उसे कुछ याद तो आया..


उसका चेहरा आज भी मेरी कल्पना जैसा था,


अक्सर रातों को आए किसी सपने जैसा था !


जैसी उम्मीद थी उसे कुछ वैसा ही पाया,


जब साथ बैठे लोगों से मेरा परिचय करवाया ....


गिर ना पड़ें कहीं मेरी आँखों से आंसू ,


मै जल्दी का बहाना करके घर चला आया ....

मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ





मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ ,
मरुस्थल  में पड़ा एक छोटा सा कण हूँ !
लफ्जों का फेर भला  मै क्या जानू
दिल मे आए ख्यालों को  लफ्जों  में पिरोता हूँ!
 सीधा हूँ और सीधी बात करता  हूँ !!


सपनो की  दुनिया से बाहर  निकलकर ,
यथार्त के धरातल पर ,
मन कि आँखों से, जब खुद को देखता हूँ !
मजबुरिओं कि चादर में लिपटा सा,
किसी अनजाने डर से सिमटा सा,
असहाय और बेबस सा नज़र आता हूँ !
सीधा हूँ और सीधी बात करता  हूँ !


कभी समाज के ठेकेदारों से ,
कभी कानून के पहरेदारों से ,
अपने हक के लिए लड़ता हूँ ..
 जानता हूँ कोई नहीं सुनने वाला ,
आदतन फिर भी शोर करता हूँ ...
सीधा हूँ और सीधी बात करता हूँ ...


कभी महंगाई की मार से ,
झूठे अश्वासन देती सरकार से .
 रोज़ सरकारी दफ्तरों की कतार में,
कभी बिजली ,पानी के इंतजार में ...
आए दिन मरता हूँ ...
सीधा हूँ और सीधी बात करता हूँ ...


अनजाने  पथ का अन जाना राही हूँ ,
 मेरी कोई पहचान नहीं  ...
मज़बूरी मेरी ख़ामोशी है ,
वरना मै बेजुबान नहीं ...
दुनिया के बाज़ार में कीमत नहीं जिसकी,
मै तो ऐसा धन हूँ ....
मरुस्थल में पड़ा एक छोटा सा कण हूँ ....
मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ .....

वो मिली ख्वाब में ..



एक मुदत के बाद मुझे उसका ख्वाब आया,
ख्वाब में उसे अपने साथ सफ़र करते पाया


वो मेरे सामने बैठी थी, पर पर्दा नशीं थी ,
नज़र ठहर गई चेहरे पर,जब उसने पर्दा उठाया

शायद पहचान ना पाई मुझको,इसीलिए पूछ बैठा ,
पूछा जो नाम ,तो पल भर के लिए चेहरा उतर आया!!


सोच रहा  था  कैसे शुरू करूँ ,क्या उससे मै कहूँ ,
शुक्र है बताने पर ही सही ,उसे कुछ याद तो आया..

उसका चेहरा आज भी मेरी कल्पना जैसा था,
अक्सर रातों को आए किसी सपने जैसा था !


जैसी उम्मीद थी उसे कुछ वैसा ही पाया,
जब साथ बैठे लोगों से मेरा परिचय करवाया ....

गिर ना पड़ें कहीं  मेरी आँखों से आंसू ,
मै जल्दी का बहाना करके घर चला आया ....