'कौशिक' की कलम से


दिल में आए ख्यालों को लफ्जों में पिरोता हूँ ,लिखने के इस सलीके को लोग नाम शायरी का देते हैं ,



मेरा पहला प्यार

वो वक्त ही कुछ अजीब था ,
या तो मै मासूम था ,
या फिर बदनसीब था ...
उसकी एक नज़र से ,
ऐसा वार हो गया ...
लाख संभाला खुद  को मैंने ,
पर प्यार हो गया ...


उसने की थी दिल्लगी ,
और मै प्यार समझ बैठा...
उसे आदत थी मुस्कुराने की ,
और मै इकरार समझ बैठा ...
वो दोस्त समझती रही मुझको ,
अपनों से भी प्यारा ..
मै हाल ए दिल कह ना पाया ,
कर ना पाया कोई इशारा ...


 एक दोस्त ने ऐसा खेल खेला ,
बन के रह गया मै खिलौना ...
इश्क की राह में जीत तुझे दिलाऊंगा,
फ़िक्र ना कर तेरे प्यार से तुझे मिलवाऊंगा ...
जाने कैसे उसकी बातों में मै आ गया ,
और दोस्त बने दुश्मन से दोखा खा गया ...


उसकी नज़र थी उस पर,
खुद से भी ज्यादा यकीं करती थी जो मुझ पर ...
मेरा सहारा लेकर ,
वो उसके करीब आ गया ....
मुझे मिला देव स्वरूप उसके दिल में ,
और वो प्यार उसका पा गया ...


आँखे खुली तो  देर हो चुकी थी भारी,
फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी...
आखरी कोशिश करने की मन में ठान ली ,
और सब कुछ  कहने के लिए उसकी बांह थाम ली ...
दिल में थी जो आग वो आंसुओं में बह गई ,
वो भी रोते रोते बस इतना ही कह गई ...
दुनिया के रिश्तों से बंधे हैं हम,
 मिलना अपना मुमकिन नहीं...
तू फ़रिश्ता है कोई इन्सान नहीं 
तेरे प्यार के काबिल मै नहीं ...
कुछ सवालों का जवाब,
मै आज भी अतीत के पन्नो  में खोजता हूँ ...
वो वफ़ा थी या बेवफा थी ,
अक्सर अकेले में सोचता हूँ ....

तब याद तेरी आने पर......

अब इस दर्द में वो अहसास कहाँ ,
 जो पहले होता था ,
तब याद तेरी आने पर आँखें ही नहीं,
 दिल भी रोता था ...
ख्याल तेरा आने पर खो जाता हूँ तुझ में,
पर पहले पूरी रात ना सोता था ...
अब इस दर्द में वो अहसास कहाँ ,
जो पहले होता था ..
.
अब ना आँखे रोती है,
और ना जिश्म तड़पता है ... 
तब मिलने कि ख़ुशी में,
पागल सा हो जाता था ..
अब तो दिल भी थोडा सा धड़कता है ...
गम को अक्सर छुपा लेता था दिल में ,
पर छुप छुप के बहुत रोता था ...
अब इस दर्द में वो अहसास कहाँ ,
जो पहले होता था ...


हर पल बातों में तेरा जिक्र,
ख्वाबों में तेरा असर ..
कभी  वफ़ा पर तो कभी तेरी बेवफाई पर,
अक्सर कुछ ना कुछ लिखता था ...
तब हर चेहरे में मुझको,
तेरा ही अक्स दीखता था ...
अब इस दर्द में वो अहसास कहाँ ,
जो पहले होता था ...
तब याद तेरी आने पर आँखें ही नहीं,
दिल भी रोता था .....2222222

एक मुदत के बाद मुझे उसका ख्वाब आया,

एक मुदत के बाद मुझे उसका ख्वाब आया,


ख्वाब में उसे अपने साथ सफ़र करते पाया॥


वो मेरे सामने बैठी थी, पर पर्दा नशीं थी ,


नज़र ठहर गई चेहरे पर,जब उसने पर्दा उठाया॥


शायद पहचान ना पाई मुझको,इसीलिए पूछ बैठा ,


पूछा जो नाम ,तो पल भर के लिए चेहरा उतर आया!


सोच रहा था कैसे शुरू करूँ ,क्या उससे मै कहूँ ,


शुक्र है बताने पर ही सही ,उसे कुछ याद तो आया..


उसका चेहरा आज भी मेरी कल्पना जैसा था,


अक्सर रातों को आए किसी सपने जैसा था !


जैसी उम्मीद थी उसे कुछ वैसा ही पाया,


जब साथ बैठे लोगों से मेरा परिचय करवाया ....


गिर ना पड़ें कहीं मेरी आँखों से आंसू ,


मै जल्दी का बहाना करके घर चला आया ....

मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ





मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ ,
मरुस्थल  में पड़ा एक छोटा सा कण हूँ !
लफ्जों का फेर भला  मै क्या जानू
दिल मे आए ख्यालों को  लफ्जों  में पिरोता हूँ!
 सीधा हूँ और सीधी बात करता  हूँ !!


सपनो की  दुनिया से बाहर  निकलकर ,
यथार्त के धरातल पर ,
मन कि आँखों से, जब खुद को देखता हूँ !
मजबुरिओं कि चादर में लिपटा सा,
किसी अनजाने डर से सिमटा सा,
असहाय और बेबस सा नज़र आता हूँ !
सीधा हूँ और सीधी बात करता  हूँ !


कभी समाज के ठेकेदारों से ,
कभी कानून के पहरेदारों से ,
अपने हक के लिए लड़ता हूँ ..
 जानता हूँ कोई नहीं सुनने वाला ,
आदतन फिर भी शोर करता हूँ ...
सीधा हूँ और सीधी बात करता हूँ ...


कभी महंगाई की मार से ,
झूठे अश्वासन देती सरकार से .
 रोज़ सरकारी दफ्तरों की कतार में,
कभी बिजली ,पानी के इंतजार में ...
आए दिन मरता हूँ ...
सीधा हूँ और सीधी बात करता हूँ ...


अनजाने  पथ का अन जाना राही हूँ ,
 मेरी कोई पहचान नहीं  ...
मज़बूरी मेरी ख़ामोशी है ,
वरना मै बेजुबान नहीं ...
दुनिया के बाज़ार में कीमत नहीं जिसकी,
मै तो ऐसा धन हूँ ....
मरुस्थल में पड़ा एक छोटा सा कण हूँ ....
मै तो हिंदुस्तान का एक आम जन हूँ .....

वो मिली ख्वाब में ..



एक मुदत के बाद मुझे उसका ख्वाब आया,
ख्वाब में उसे अपने साथ सफ़र करते पाया


वो मेरे सामने बैठी थी, पर पर्दा नशीं थी ,
नज़र ठहर गई चेहरे पर,जब उसने पर्दा उठाया

शायद पहचान ना पाई मुझको,इसीलिए पूछ बैठा ,
पूछा जो नाम ,तो पल भर के लिए चेहरा उतर आया!!


सोच रहा  था  कैसे शुरू करूँ ,क्या उससे मै कहूँ ,
शुक्र है बताने पर ही सही ,उसे कुछ याद तो आया..

उसका चेहरा आज भी मेरी कल्पना जैसा था,
अक्सर रातों को आए किसी सपने जैसा था !


जैसी उम्मीद थी उसे कुछ वैसा ही पाया,
जब साथ बैठे लोगों से मेरा परिचय करवाया ....

गिर ना पड़ें कहीं  मेरी आँखों से आंसू ,
मै जल्दी का बहाना करके घर चला आया ....








हुस्न कि तारीफ

आपके हुस्न कि तारीफ में सोचता हूँ कुछ अल्फाज लिखूं ,
लिखा ना हो जो अब तक किसी ने ऐसा कुछ आज लिखूं ....

गीत लिखूं या गजल लिखूं ,शायरी लिखूं या कलाम लिखूं ,
लिखने को बेचैन हूँ ,पर समझ ना आए क्या लिखूं ....

चेहरे को क्या लिखूं ,चाँद लिखूं या गुलाब लिखूं ,
आँखों को क्या लिखूं ,मधुशाला लिखूं या शराब लिखूं ....

जुल्फों को क्या लिखूं ,घटा लिखूं या शाम लिखूं ,
दिल करता है हर नगमा बस आपके नाम लिखूं ...

हर लफ्ज एक गीत बने ,ऐसा कोई साज़ लिखूं ,
कौशिक कि कलम से एक नया अंदाज़ लिखूं ....

आपके हुस्न कि तारीफ में सोचता हूँ कुछ अल्फाज लिखूं ,
लिखा ना हो जो अब तक किसी ने ऐसा कुछ आज लिखूं ....

प्रांतवाद का ज़हर


आंतकवादी और देश द्रोही हैं,
ये राज नेताओं के भेष में,

प्रान्त वाद का नया ज़हर,
ये फैला रहे हैं देश में !

आम आदमी कि फ़िक्र नहीं ,
ये मुद्दा नया उठाते हैं,

देश प्रेम को ढाल बनाकर,
नित सड़कों पर उतर आते हैं !

ऐसा क्या कह दिया "खान" ने,
ये पीछे पड़ गए जी जान से,

राजनिति के सांप ने देखो,
कैसा अपना रंग दिखाया,

खेल ,कला  को भी  बख्शा नहीं,
उसके बयान को हथियार बनाया !

लोकतंत्र का निकला दिवाला,
भक्षक बन गया खुद रखवाला,

कानून कोई नया बनाओ,
सस्ती राजनिति पर रोक लगाओ,

'कौशिक,कि बात मानो तो ,
दे दो इनको देश निकाला,

आम आदमी झुलस रहा है,
इनके आपस के द्वेष में,

प्रान्त वाद का नया जहर,
ये फैला रहे हैं देश में....

आतंकवादी और देशद्रोही हैं ,
ये राजनेताओं के भेष में .....

इश्क से इंतजार तक

तुम आओगी मिलने एक दिन ,

इस उम्मीद में जिए जा रहा हूँ ...

कौन कमबख्त कहता है मै शराबी हूँ ,


वो तो तेरे इंतजार में पिए जा रहा हूँ ...


चाय कि चुस्कियों में अब स्वाद नहीं आता ,


कुछ भी कहो अब पिए बिना रहा नहीं जाता !


तेरे इंतजार कि घडी इतनी लम्बी हो गई ,


दर्द तन्हाई का अब सहा नहीं जाता ...


कब बीत गई रात कुछ पता ना चला ...


चार जाम पिने तक पुरे होश में था ,


बोतल कब ख़तम हुई कुछ पता ना चला ...


अब तो हर रोज़ का ये काम हो गया,


देख तेरे इश्क में क्या अंजाम हो गया ...


अच्छा होता अगर आने का वादा ना करती,


एक शरीफ इन्सान शहर भर में बदनाम हो गया ...


आज ठुकराया भी तो इस मुकाम पर तुने ,


जब सर पर क़र्ज़ बेशुमार हो गया ...


पहले पीता था तेरे इंतजार में ,


अब दर्द में पिए जा रहा हूँ ,

उठाया था जो बैंक से कर्जा ,


उसे किश्तों में दिए जा रहा हूँ ...

दिल कि आवाज़

मै अक्सर अकेले में,
पूछता हूँ अपने दिल से ,
ऐ दिल बता तू क्या चाहता है !

सुनकर मुस्कुराता है दिल,
और कहता है मुझसे ,
आज पूछते हो तुम,
जब दफ़न हो गई हर ख्वाइश ,
तेरी जरुरत के आगे ,
दब गई मेरी आवाज़ ,
तेरी फितरत के आगे !

आज पूछते हो तुम ,
जब मजबूरियां बन गई कमजोरियां ,
तुम करते रहे समझोते हालात से ,
और बढती गई दूरियां !
जब बदल दिए रास्ते,
रुकावटों के डर से ...
सोचो क्या सोच के निकले थे घर से !

आज पूछते हो तुम ,
जब भुला चुके खुद को ही ,
आगे बढ़ने कि होड़ में ...
और पिछड़ गए हर दौड़ में ....

काश उस दिन सुनी होती मेरी आवाज़ ,
जब उठाया था पहला कदम ,
तब मै बताता क्या है तेरी मंजिल ,
और क्या है तेरा रास्ता !

ये कैसा एहसास है

बुझी नहीं बरसों से जाने कैसी ये प्यास है ,

जानता हूँ तू नहीं आएगी फिर भी तेरी आस है !!

कहता है ज़माना 'कौशिक' हो गया दीवाना ,

कोई क्या जाने तू हर पल मेरे साथ है !!

तुझे पाकर भी मै कभी पा ना सका ,

मेरे दिल में बसा हुआ तू वो एहसास है !!

भुला नहीं आँखों से तेरी बेवफाई का मंज़र ,

या खुदा ! क्यों फिर भी मुझे प्यार पे विश्वास है !!

दिल कि बात

सोचा था हँसते -हँसते करेंगे रुखसत ,

पर लबों पर हंसी ला ना सके ....

चेहरे कि उदासी ने कर दी बयाँ ,

बात दिल कि जो कभी बता ना सके ....

खो गया है भारत मेरा


जब भी मै स्वामी रामदेव जी को देखता हूँ तो हैरान हो जाता हूँ उनके सिने में जलती हुई देश प्रेम कि आग को देखकर !और सोचता हूँ काश यही आग हर भारतीय के दिल में हो ! तब वो दिन दूर नहीं होगा जब उनका देखा हुआ सपनों के भारत का निर्माण हम खुद करेंगे ! उन्ही को संबोदित करते हुए ये कुछ पंक्तियाँ ......


खो गया है भारत मेरा ,

ढूंढ़ के कहीं से ला दो जी...

देश प्रेम और भक्ति कि ,

ज्योति दिलों में जगा दो जी ...

ये सदाचार क्या बला है ,

पूछो तो लोग बतलाते हैं,

चरित्र कि बात चले तो ,

सर शर्म से झुक जातें हैं ...

भारत स्वाभिमान कि परिभाषा ,

गौर से सभी को समझा दो जी ...

खो गया है भारत मेरा ,

ढूंढ़ के कहीं से ला दो जी ...

बैर द्वेष कि आग है दिल में ,

इन्सान -इन्सान से घबराता है,

जिसका जहाँ पर दाव चले ,

कुचल के आगे बढ़ जाता है ...

राम ,रहीम और नानक कि ,

फिर से याद दिला दो जी ...

खो गया है भारत मेरा ,

ढूंढ़ के कहीं से ला दो जी ...

महंगाई कि चक्की में ,

गरीब पीसता जाता है ...

देश हित कि बात करें जो ,

वो पागल कहलाता है ...

देशभक्ति कि वही ज्वाला ,

फिर से दिलों में जला दो जी ...

खो गया कहीं भारत मेरा ,

ढूंढ़ के कहीं से ला दो जी ....



तीन लफ्जों में कर दूँ बयाँ ,

प्यार इतना भी नहीं असाँ ...

ये तो एक एहसास है ,

जो सबसे जुदा ,सबसे खास है ,

ये ऐसा सागर है ,

जिसकी गहराई बे हिसाब है ...

प्यार पाना है अगर ,

तो इसके काबिल बनो ,

कभी दरिया ,कभी कश्ती ,

कभी भंवर तो कभी शाहिल बनो ...

कभी ये समर्पण है ,कभी ये फ़र्ज़ है ,

कभी आस्था है ,तो कभी क़र्ज़ है ...

ये इश्क का मजहब है ,

आशिकों का खुदा है ...

कोई नहीं इसके जैसा ,

ये सबसे जुदा है ...

ये शायर कि शायरी में ,

कवि कि कविता में ...

यही है बाईबल और कुरान में ,

यही है गुरुग्रंथ और गीता में ....

माना ये पूरी ज़िन्दगी नहीं ,

पर ज़िन्दगी का बड़ा हिस्सा है ,

जो कभी खतम ना हो ,

ऐसा एक किस्सा है ...

कुछ लफ्जों में कर दूँ बयाँ ,

प्यार इतना भी नहीं आसान ...

अँधेरे की आदत इस कदर पड़ गई 'कौशिक' कि अब चांदनी से भी डर लगता है ,
एक चिराग ने ही घर जलाया है मेरा कि अब हर रोशनी से डर लगता है !
ख्वाबों में देखूं तो बड़ी हसीं लगती है जिंदगी ......
खुली आँखों से बड़ी बेजान सी लगती है ज़िन्दगी ...

महफ़िल में जाऊँ तो रंगीन लगती है ये जिंदगी ....
तन्हाई में सोचूं तो गुमनाम है ये जिंदगी .....

खुशिओं के साए में बड़ी छोटी लगती है जिंदगी .....
गम की परछाई में बहुत लम्बी लगती है जिंदगी ....

यूं तो दोस्तों के बिना भी जीते हैं जिंदगी,
पर "कौशिक "यही है जीना तो क्या है जिंदगी...

ख्वाब देखें हैं जब से उनके ,

दीवाना हो गया मै उनका ...

निगाहें ढूंढ़ रही है उनको ,

नाम तक मालूम नहीं जिनका ...

उमर बीत गई उन्हें समझाते समझाते ,पर वो अब तक नहीं समझे ,

बाद मरने के अगर समझे 'कौशिक ',तो फिर क्या समझे ......

माफ़ी मांगने कि ताक़त मुझ में नहीं ......




मै कोरा हूँ शायद ,


और वो है मुझसे भी नादाँ ...


कभी वो मुझसे परेशां ,


कभी मै उससे परेशां ...


उसका अंदाज़े बयां ही कुछ ऐसा है ,


कि चोट दिल पे लगती है ...


मै अपना हक समझता हूँ उसपर ,


वो ये क्यों नहीं समझती है ...


मै अक्सर कठोर हो जाता हूँ ,


नहीं मानूंगा इस बार,


सोच के रूठ जाता हूँ ...


पर उसकी मानाने कि जिद से ,


मै हर बार टूट जाता हूँ ...


फिर क्यों रूठी है वो मुझसे ,


मुझे आजमाने के लिए ,


उसे मालूम है इतना ,


मै नहीं आऊंगा मनाने के लिए ...


दुरी सहने कि ताक़त है मुझमे ,

पर झुकने कि आदत मुझमे नहीं ...


माफ़ करने कि ताकत है मुझमे ,


पर माफ़ी मांगने कि ताकत मुझमे नहीं ...