'कौशिक' की कलम से


दिल में आए ख्यालों को लफ्जों में पिरोता हूँ ,लिखने के इस सलीके को लोग नाम शायरी का देते हैं ,



हुस्न कि तारीफ

आपके हुस्न कि तारीफ में सोचता हूँ कुछ अल्फाज लिखूं ,
लिखा ना हो जो अब तक किसी ने ऐसा कुछ आज लिखूं ....

गीत लिखूं या गजल लिखूं ,शायरी लिखूं या कलाम लिखूं ,
लिखने को बेचैन हूँ ,पर समझ ना आए क्या लिखूं ....

चेहरे को क्या लिखूं ,चाँद लिखूं या गुलाब लिखूं ,
आँखों को क्या लिखूं ,मधुशाला लिखूं या शराब लिखूं ....

जुल्फों को क्या लिखूं ,घटा लिखूं या शाम लिखूं ,
दिल करता है हर नगमा बस आपके नाम लिखूं ...

हर लफ्ज एक गीत बने ,ऐसा कोई साज़ लिखूं ,
कौशिक कि कलम से एक नया अंदाज़ लिखूं ....

आपके हुस्न कि तारीफ में सोचता हूँ कुछ अल्फाज लिखूं ,
लिखा ना हो जो अब तक किसी ने ऐसा कुछ आज लिखूं ....

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

अच्छा लगा आपका प्रयास - प्रयत्नशील रहें