'कौशिक' की कलम से


दिल में आए ख्यालों को लफ्जों में पिरोता हूँ ,लिखने के इस सलीके को लोग नाम शायरी का देते हैं ,



इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह ?

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दो वर्ष पूर्व तक स्वामी रामदेव जी एक योगी थे और अति आदरनीय जीवन व्यतीत कर रहे थे !  आम आदमी से लेकर खास आदमी और नेता से लेकर अभिनेता तक उनके प्रशंशक और अनुयायी थे ! अगर वो चाहते तो इसी तरह जिंदगी गुजार  सकते थे !  जैसा की कुछ अभिनेताओं और नेताओं का कहना है की हर किसी को अपना काम करना चाहिए जो शायद ये भूल गये  हैं कि अगर आज़ादी से पहले हर इन्सान यही सोचता तो आज भी हम गुलामी की जंजीरों में जकड़े होते !  क्योंकि गाँधी जी शायद एक वकील सुबाष चंदर  बोस एक प्रोफसर और चंदेर्शेखर आजाद किसी संस्कृत विधापीठ में पढ़ा रहे होते ! किन्तु देश को प्यार करने वाले खुद से ज्यादा देश की फ़िक्र करतें हैं ! अपनी आन बान और शान देश हित में झोक  कर देते हैं !वही स्वामी जी ने भी किया !
आज की स्थिति भी कुछ कुछ वैसी ही है मुठी भर भ्रष्ट और   गद्दार नेता देश को नोच नोच कर खा रहें हैं  और हर कोई अपना काम कर रहा है ! वो चाहते भी यही हैं की हर कोई अपना काम करें ताकि कोई उनके काम में बाधा ना बने और उनका काम है देश को लूटना !  किन्तु जिसके दिल  में भारत माता विराजमान हो, वो अपनी माँ का इस तरह बलात्कार होते नहीं देख सकता !  इसी वेदना में स्वामी जी ने  देश को वापिस देने की ठानी जो सम्मान उन्हें इस देश से मिला था ! (किन्तु उनसे कुछ गलतियाँ हुई जिनका जिक्र मै अपने अगले ब्लॉग में करूँगा ) !  तब उन्होंने देश को भ्रष्टाचार् के  प्रति जागरूकता अभियान शुरू किया जहाँ उनके साथ लाखों लोग जुड़ते चले गए ! उस वक्त हमारी मिडिया टी.आर पी. और अपने आप को दूसरों से बेहतर बताने की होड़ में लगी थी ! इसीलिए किसी भी नेशनल चैनल पर उन्हें नहीं दिखया गया ! उसके बाद स्वामी जी ने २७ फ़रवरी को विशाल  रैली की  जिसमें बड़े बड़े विचारकों ने अपनी राय रखी पर मिडिया के लिए ये सब कोई न्यूज़ नहीं थी !
अब में आपको आज़ादी से पहले के दौर में लेकर जाता हूँ तब कोई इलेक्ट्रोनिक्स मिडिया नहीं था ! भारत में आज़ादी के लिए बिगुल बज चूका था ! महात्मा  गाँधी से लेकर सुबाष चंदर बोस और चंदर शेखर  आजाद से लेकर भगत सिंह तक हर कोई अंग्रेजो के खिलाफ खड़ा था ! और भारत के आखरी आदमी तक उनकी चर्चा थी ! उन सभी के लाखों समर्थक थे तो विरोधी भी थे ! जिसका कद  जितना  बड़ा था उतने ही ज्यादा उनके विरोधी भी थे ! आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला भी चला !  किन्तु सबका ध्येय एक था ! आज़ादी  और हर आम इन्सान यही चाहता था फिर वो चाहे गाँधी के रास्ते से मिले या भगत सिंह के रास्ते चलकर मिले ! आज इतिहास में उनका नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है और वो लाखों लोगों के हीरो हैं वही दूसरी और आरोप लगाने वालों को कोई नहीं जानता !
अब आज के दौर की बात करते हैं ध्येय सबका एक ही है , रास्ता बेशक अलग हो  चाहे वो अन्ना हजारे हो यां स्वामी रामदेव जी !किन्तु आज इलेक्ट्रोनिक्स मिडिया ने जो भूमिका निभाई है वो शक के घेरे में है की वो इस अभियान को सफल बनाना चाहते हैं या रोकना चाहते हैं ! क्या ये उनकी मजबूरी है की उन्हें  २४ घंटे न्यूज़ दिखाने के  लिए कुछ गैर जिम्मेदार  नेताओ से उनकी राय पूछनी पड़ती है जो बेतुके आरोपों कि जड़ी लगा देता है ! जिसका कोई आधार नहीं होता और उसे ब्रकिंग न्यूज़ बनाकर बार बार दिखाया  जाता है !ताकि आम लोग जो स्वामी जी बारे में कुछ नहीं जानते वो आरोपों के आधार पर अपनी राय कायम कर सकें !
 कुछ वरिष्ट पत्रकारों से बातचीत करने पर उन्होंने भी माना की कुछ चैनेल अपनी नैतिकता और फ़र्ज़ को भूलकर मुद्दे से आम इन्सान को हटाना चाहते हैं !क्या ये माना जाए की उन्हें चैनेल के मालिकों की तरफ से कोई दिशा  निर्देश था या  सरकारी दबाव में ऐसा कर रहे थे !कुछ चैनेल तो स्वामी रामदेव को सिर्फ रामदेव से संबोदित कर रहे थे ! हमारे भारत वर्ष की भाषा और  संस्कर्ती ने हमें सैकंडो सम्मानजनक शब्द दिए हैं !हमरे यहाँ  किसी आम साधू को भी इस प्रकार संबोदित नहीं किया जाता !!मेरा मानना है की आज अगर इलेक्ट्रोनिक्स मिडिया ना होता तो ये आन्दोलन ज्यादा सफल होता !क्योंकि प्रिंटिंग मिडिया के जरिये हर भारतीय को स्वामी जी के ध्येय का पता चलता और आम जन उनसे जुड़ता चला जाता !जहाँ आम जन में यही चर्चा होती कि भारत का कला धन विदेशों में कितना है और सरकार को उसे वापिस लेन में क्या परेशानी है !
एक तरफ जहाँ स्वामी जी हस्पताल में मौत से जूझ रहे थे वही दूसरी और एक चैनेल कुछ पाखंडी साधुओं के साथ (जो नाम के लिए कीसी भी हद तक गिर जाते हैं) स्वामी जी के योगी होने पर ही सवाल खड़े कर रहे थे !जिन्होंने योग का  डंका भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में बजाया  है !आज अगर किसी इन्सान से पूछा जाए कि क्या वो योग के बारे में कैसे जानता है तो उसका जवाब स्वामी रामदेव होगा ! वो उस व्यक्ति पर दोष लगा कर खुद को ही छोटा दिखा रहे थे  ! क्या चाँद की तरफ मुह करके थूकने से चाँद मैला हो जाएगा ?ये सवाल मै उस डोंगी सी पूछता हूँ जिसे ये भी नहीं पता  कि स्वामी जी हँसते कैसे हैं !उनकी दिनचर्या क्या है !जिसे ये भी नहीं पता की स्वामी जी ने वर्षों से अन्न को त्याग रखा है फिर भी उन्होंने १५ से २० बार प्रेस कांफ्रेंस कि और हर बेतुके सवाल का जवाब देने कि कोशिश क़ी !इसी प्रकार किसी ना किसी चैनल पर कोई ना कोई नेता आरोप लगा रहा था ! और पत्रकार अपने नैतिक मूल्यों क़ी दुहाई दे रहा था !
सवाल ये उठता  है की अगर वो निष्पक्ष राय देना ही चाहते हैं तो बहस के लिए दोनों पक्षों को क्यों नही बुलाते !जिससे आम जानता को भी सोचने का मौका मिले ! एक व्यक्ति आरोप लगता है की स्वामी जी के पास करोड़ों की सम्पति है तो उससे ये प्रश्न पूछने वाला कोई नहीं होता की क्या करोड़ों रुपये की आयुर्वेदिक दवाओं का उत्पादन स्वामी जी कमरे में बैठकर करें !और ये सम्पति स्वामी जी की नहीं बल्कि एक ट्रस्ट की है जो कई तरह से सेवाएँ दे रही है !वो इसका उपयोग अपने परिवार के लिए नहीं करते !और अगर ये गलत तरीके से कमाई गई होती तो रात को सोते हुए लोगों पर लाठियां बरसाने वाली सरकार उन्हें यहाँ तक पहुचने देती ! सच तो ये है की वो अपनी सभी जाँच एजेंसियों से उनकी जाँच करवा चुकी है किन्तु उन्हें मुह की खानी पड़ी !
तब कुछ नेता लोकतंत्र कि दुहाई देने लगे जिन्हें  लोकतंत्र कि परिभाषा तक नहीं मालूम और मिडिया के जरिये लोगों को बरगलाने कि कोशिश करते दिखे! उनका कहना था कि हम जानता के चुने हुए नेता हैं ! क्या इसका मतलब ये हुआ कि जनता ने उन्हें लूटने का अधिकार दे दिया !कई  वरिष्ट नेताओं  का कहना तो यहाँ तक था कि स्वामी जी को कोई हक़ नहीं कि वो काले धन को लाने कि मांग करें क्योंकि वो खुद जनता के चुने हुए सांसद है तो उन्हें ही उस पर  फैसला करने का हक है ! मै उस नेता को चैलेंज करता हूँ कि वो बिना किसी पर्लोभन के एक लाख तो दूर दस हज़ार व्यक्ति इकठे करके दिखा दे !जिस लोकतंत्र कि वो दुहाई देते हैं अब जरा उसे समझ लो !
पिछले लोकसभा चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत रहा @ ५८ % ,
कांग्रेस का वोटिंग % रहा...  २८.५% ,
हमारे देश कि कुल आबादी.....१२० करोड़ ,
कुल मत दान हुआ ....३८७४५३२२३
कांग्रेस को मिले ......११०४२४१६८
अगर इसी का नाम लोकतंत्र है तो हमारे लिए इससे बड़ी विडम्बना और कोई नहीं क़ी १२० करोड़ लोगों पर राज करने वाली सरकार को सिर्फ ११ करोर लोगों ने चुना है !जिसकी दुहाई ये नेता देते हैं क्या  इसी का नाम लोकतंत्र है !

आप सभी को मेरे विचार कैसे लगे मुझे जरूर बताएं !
आर.ऍम.शर्मा "कौशिक"
ईमेल ..rmsharma.sharma@gmail.com

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