मै अक्सर अकेले में,
पूछता हूँ अपने दिल से ,
ऐ दिल बता तू क्या चाहता है !
सुनकर मुस्कुराता है दिल,
और कहता है मुझसे ,
आज पूछते हो तुम,
जब दफ़न हो गई हर ख्वाइश ,
तेरी जरुरत के आगे ,
दब गई मेरी आवाज़ ,
तेरी फितरत के आगे !
आज पूछते हो तुम ,
जब मजबूरियां बन गई कमजोरियां ,
तुम करते रहे समझोते हालात से ,
और बढती गई दूरियां !
जब बदल दिए रास्ते,
रुकावटों के डर से ...
सोचो क्या सोच के निकले थे घर से !
आज पूछते हो तुम ,
जब भुला चुके खुद को ही ,
आगे बढ़ने कि होड़ में ...
और पिछड़ गए हर दौड़ में ....
काश उस दिन सुनी होती मेरी आवाज़ ,
जब उठाया था पहला कदम ,
तब मै बताता क्या है तेरी मंजिल ,
और क्या है तेरा रास्ता !
Vartika Nanda Poetry
-
अजब संयोग है या दुर्योग
छूटी हुई प्रार्थनाएं याद आती हैं
तीर्थों में छोड़ आई थी उन्हें
लगा था – वे सुरक्षित रहेंगी और अपनी उम्र पा लेंगी
पानी पर लकीरे...
10 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें