मै कोरा हूँ शायद ,
और वो है मुझसे भी नादाँ ...
कभी वो मुझसे परेशां ,
कभी मै उससे परेशां ...
उसका अंदाज़े बयां ही कुछ ऐसा है ,
कि चोट दिल पे लगती है ...
मै अपना हक समझता हूँ उसपर ,
वो ये क्यों नहीं समझती है ...
मै अक्सर कठोर हो जाता हूँ ,
नहीं मानूंगा इस बार,
सोच के रूठ जाता हूँ ...
पर उसकी मानाने कि जिद से ,
मै हर बार टूट जाता हूँ ...
फिर क्यों रूठी है वो मुझसे ,
मुझे आजमाने के लिए ,
उसे मालूम है इतना ,
मै नहीं आऊंगा मनाने के लिए ...
दुरी सहने कि ताक़त है मुझमे ,
पर झुकने कि आदत मुझमे नहीं ...
माफ़ करने कि ताकत है मुझमे ,
पर माफ़ी मांगने कि ताकत मुझमे नहीं ...
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