'कौशिक' की कलम से


दिल में आए ख्यालों को लफ्जों में पिरोता हूँ ,लिखने के इस सलीके को लोग नाम शायरी का देते हैं ,



माफ़ी मांगने कि ताक़त मुझ में नहीं ......




मै कोरा हूँ शायद ,


और वो है मुझसे भी नादाँ ...


कभी वो मुझसे परेशां ,


कभी मै उससे परेशां ...


उसका अंदाज़े बयां ही कुछ ऐसा है ,


कि चोट दिल पे लगती है ...


मै अपना हक समझता हूँ उसपर ,


वो ये क्यों नहीं समझती है ...


मै अक्सर कठोर हो जाता हूँ ,


नहीं मानूंगा इस बार,


सोच के रूठ जाता हूँ ...


पर उसकी मानाने कि जिद से ,


मै हर बार टूट जाता हूँ ...


फिर क्यों रूठी है वो मुझसे ,


मुझे आजमाने के लिए ,


उसे मालूम है इतना ,


मै नहीं आऊंगा मनाने के लिए ...


दुरी सहने कि ताक़त है मुझमे ,

पर झुकने कि आदत मुझमे नहीं ...


माफ़ करने कि ताकत है मुझमे ,


पर माफ़ी मांगने कि ताकत मुझमे नहीं ...

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