'कौशिक' की कलम से


दिल में आए ख्यालों को लफ्जों में पिरोता हूँ ,लिखने के इस सलीके को लोग नाम शायरी का देते हैं ,




तीन लफ्जों में कर दूँ बयाँ ,

प्यार इतना भी नहीं असाँ ...

ये तो एक एहसास है ,

जो सबसे जुदा ,सबसे खास है ,

ये ऐसा सागर है ,

जिसकी गहराई बे हिसाब है ...

प्यार पाना है अगर ,

तो इसके काबिल बनो ,

कभी दरिया ,कभी कश्ती ,

कभी भंवर तो कभी शाहिल बनो ...

कभी ये समर्पण है ,कभी ये फ़र्ज़ है ,

कभी आस्था है ,तो कभी क़र्ज़ है ...

ये इश्क का मजहब है ,

आशिकों का खुदा है ...

कोई नहीं इसके जैसा ,

ये सबसे जुदा है ...

ये शायर कि शायरी में ,

कवि कि कविता में ...

यही है बाईबल और कुरान में ,

यही है गुरुग्रंथ और गीता में ....

माना ये पूरी ज़िन्दगी नहीं ,

पर ज़िन्दगी का बड़ा हिस्सा है ,

जो कभी खतम ना हो ,

ऐसा एक किस्सा है ...

कुछ लफ्जों में कर दूँ बयाँ ,

प्यार इतना भी नहीं आसान ...

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